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18 दिसंबर 2018 मंगलवार।
सत्य के राह दर्शाने वाले सतनामी समाज के परम गुरु घासीदास का आज 18 दिसंबर को 265 वां जन्मदिन है, घासीदास एक ऐसा संत था जो प्रत्येक जीव के प्रति आस्था रखा करता था। इनका कहना था कि सत्य के मार्ग पर चलकर नाम कमाना है, बाबा ने सत्य के मार्ग पर चलकर इतना नाम कमाया कि आज कई लाख लोग उनका मार्गदर्शन में चलकर सतनाम धर्म को अपनाया है और उनके मार्गदर्शन में चल रहा है।
18 दिसंबर 1756 गुरुवार के शुभ अवसर पर बाबा गुरु घासीदास का जन्म एक छोटा सा गांव गिरोधपुरी तहसील बलौदाबाजार जिला रायपुर छत्तीसगढ़ में हुआ था। इनके पिता महंगू दास मुलत: हरियाणा के निवासी थे। वर्ष 1672 में हुए मुगल सम्राट औरंगजेब से लड़ाई के बाद इनके परिवार हरियाणा के नारनौल नामक स्थान से वर्तमान छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में महा नदी के किनारे गिरौद नामक स्थान पर आकर बस गए थे, यही बाबा का जन्म हुआ था।
बाबा ने बचपन से ही आध्यात्मिक विचार से चलने लगा, उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करने का ठान लिया, इन्होंने गिरोधपुरी स्थित छाता पहाड़ नामक स्थान पर घोर जंगल में तपस्या शुरू किया बाद में रायगढ़ जिले के सारंगढ़ तहसील क्षेत्र में एक पेड़ के नीचे तपस्या के बाद उन्हें पूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ। जिसमें उन्होंने सात वचन दिया (1) सतनाम पर विश्वास रखना होगा, (2) जीव की हत्या नहीं करना है, (3) मांसाहार नहीं करना है, (4) चोरी जुआरी से दूर रहना है, (5) नशा सेवन नहीं करना है, (6) जात - पात के संबंध में नहीं पड़ना है और (7) व्वाभिचारी नहीं नहीं करना है। उन्होंने सात कर्म और भी बताया है (1) सत्य एवं अहिंसा, (2) धैर्य, (3) लगन, (4) करुणा, (5) कर्म, (6) सरलता और (7) व्यवहार।
आज सतनामी समाज के लोग गांव-गांव एवं शहरों में बड़े धूमधाम से जयंती मना रहे हैं। अलग-अलग गांव में अलग-अलग दिन समाज के लोग इकट्ठा होकर बाबा जी का जयंती मनाते हैं। वर्ष 1836 में बाबा जी अंतर्ध्यान हो गए।
18 दिसंबर 2018 मंगलवार।
सत्य के राह दर्शाने वाले सतनामी समाज के परम गुरु घासीदास का आज 18 दिसंबर को 265 वां जन्मदिन है, घासीदास एक ऐसा संत था जो प्रत्येक जीव के प्रति आस्था रखा करता था। इनका कहना था कि सत्य के मार्ग पर चलकर नाम कमाना है, बाबा ने सत्य के मार्ग पर चलकर इतना नाम कमाया कि आज कई लाख लोग उनका मार्गदर्शन में चलकर सतनाम धर्म को अपनाया है और उनके मार्गदर्शन में चल रहा है।
18 दिसंबर 1756 गुरुवार के शुभ अवसर पर बाबा गुरु घासीदास का जन्म एक छोटा सा गांव गिरोधपुरी तहसील बलौदाबाजार जिला रायपुर छत्तीसगढ़ में हुआ था। इनके पिता महंगू दास मुलत: हरियाणा के निवासी थे। वर्ष 1672 में हुए मुगल सम्राट औरंगजेब से लड़ाई के बाद इनके परिवार हरियाणा के नारनौल नामक स्थान से वर्तमान छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में महा नदी के किनारे गिरौद नामक स्थान पर आकर बस गए थे, यही बाबा का जन्म हुआ था।
बाबा ने बचपन से ही आध्यात्मिक विचार से चलने लगा, उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करने का ठान लिया, इन्होंने गिरोधपुरी स्थित छाता पहाड़ नामक स्थान पर घोर जंगल में तपस्या शुरू किया बाद में रायगढ़ जिले के सारंगढ़ तहसील क्षेत्र में एक पेड़ के नीचे तपस्या के बाद उन्हें पूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ। जिसमें उन्होंने सात वचन दिया (1) सतनाम पर विश्वास रखना होगा, (2) जीव की हत्या नहीं करना है, (3) मांसाहार नहीं करना है, (4) चोरी जुआरी से दूर रहना है, (5) नशा सेवन नहीं करना है, (6) जात - पात के संबंध में नहीं पड़ना है और (7) व्वाभिचारी नहीं नहीं करना है। उन्होंने सात कर्म और भी बताया है (1) सत्य एवं अहिंसा, (2) धैर्य, (3) लगन, (4) करुणा, (5) कर्म, (6) सरलता और (7) व्यवहार।
आज सतनामी समाज के लोग गांव-गांव एवं शहरों में बड़े धूमधाम से जयंती मना रहे हैं। अलग-अलग गांव में अलग-अलग दिन समाज के लोग इकट्ठा होकर बाबा जी का जयंती मनाते हैं। वर्ष 1836 में बाबा जी अंतर्ध्यान हो गए।
लेखक - *मनितोष सरकार, बिल्हा*
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