ईश्वर चंद्र विद्यासागर

ईश्वर चंद्र विद्यासागर जीवनी
 ईश्वर चंद्र विद्यासागर भारत के हीरो भी कह सकते हैं, जिन्होंने गरीबों की सहायता की जिन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए लोकमत प्रस्तुत किए। हमारे हिंदू समाज में पहले एक युवक अनेक लड़कियों से विवाह करता था और उसकी मृत्यु के बाद उन्हें विधवा बन  कर जीना पड़ता था इसलिए इन्होंने हमारे भारत में महिलाओं की जिंदगी बेहतर बनाने का प्रयास किया और ब्रिटिश सरकार से विधवा पुनर्विवाह लागू करने पर जोर दिया।
                                                       वह पेशे से एक शिक्षक थे। वह भारतीय समाज के कई वर्गों द्वारा महिलाओं पर हो रहे अत्याचार का विरोध करते थे।

परिचय:-  ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ था। इनका जन्म बंगाली ब्राह्मण परिवार में 26 सितंबर 1820 को हुआ उनका जन्म एक छोटे से परिवार में हुआ था वह ठाकुरदास बंदोपाध्याय और भगवती देवी के यहां जन्मे थे। उनकी रुचि पढ़ाई में बहुत ही अधिक थी वह अपनी शिक्षा ग्रहण करने के लिए रात-रात भर बिजली के खंबे के नीचे पढ़ते थे उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए बहुत छात्रवृत्ति अर्जित कि। उन्होंने कोलकाता के विश्वविद्यालय में संस्कृत विषय में अपना दाखिला कराया और संस्कृत व्याकरण साहित्य वेदांत और खगोल विज्ञान का अध्ययन किया और 1839 में उन्होंने अपनी लौ की परीक्षा पूरी की और 1841 में उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की जिसके कारण वे  उच्च कोटि के विद्वान बनने में सफलता हासिल किए उनकी विद्वता के कारण उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी गई थी विद्यासागर एक विद्यार्थी के लिए अच्छे मार्गदर्शक भी हैं। नारी शिक्षा के समर्थक थे उनके प्रयास से ही कोलकाता में तथा अन्य स्थानों में बालिकाओं के लिए विद्यालय की स्थापना हुई ईश्वर चंद्र विद्यासागर एक शिक्षक के साथ-साथ बहुत अच्छे लेखक प्रकाशक अनुवादक सुधारक और मानवतावादी व्यक्ति थे सुधारक के रूप में राजा राममोहन राय का उत्तराधिकारी माना जाता है। इन्होंने विधवा पुनर्विवाह लागू होने के बाद 1856 से 1860 साल के मध्य इन्होंने कई  विधवाओं का पुनर्विवाह कराया  ।                                                                          विद्यासागर बहुत दानवान व्यक्ति भी थे  वे उतने ही पैसे खर्च करते थे जितने की उनको जरूरत है वह फिजूल के खर्चे नहीं करते थे और अपने पैसों से वह उन बच्चों की मदद करते थे और गरीबों की मदद किया करते थे उन्होंने बच्चों के पढ़ने के लिए कई जगहों पर विद्यालयों की स्थापना भी की।

इनका निधन 29 जुलाई 1891 को हुआ।

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